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V. Aaradhyaa

Classics

4.5  

V. Aaradhyaa

Classics

रात चुपके से आई

रात चुपके से आई

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रात चुपके से आयी, पता ना चला

रोशनी बुझ गयी, अश्क़ जलने लगे


कल सुबह फिर सुबह होगी एक और नयी

तू मिलेगी कहीं, ख्वाब पलने लगे

रोशनी बुझ गयी, अश्क़ जलने लगे


सारा दिन तो गया, ठोकरों में मेरा

रात होते ही ज़ख्म, सारे छिलने लगे

रोशनी बुझ गयी, अश्क़ जलने लगे


तेज साँसें मेरी, मन्द मुस्कान थी

तेज साँसे मेरी, मन्द मुस्कान थी

कुछ कहा ही नहीं, होंठ सिलने लगे

रोशनी बुझ गयी, अश्क़ जलने लगे


तुझको पाके मिला, एक सुकूँ सा मुझे

तुझको पाके मिला, एक सुकूँ सा मुझे

तुझको पाया था, हाथ मलने लगे

रोशनी बुझ गयी, अश्क़ जलने लगे


फूल खिलते हैं जैसे, यूँ खिलता था मैं

फूल खिलते हैं जैसे, यूँ खिलता था मैं

आज सचिन मुझे, सब मसलने लगे

रोशनी बुझ गयी, अश्क़ जलने लगे


रात चुपके से आयी, पता ना चला

रोशनी बुझ गयी, अश्क़ जलने लगे।


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