सन्नाटा
सन्नाटा


प्राणों की आहुति नही यहाँ
तुम प्राणों के पहरेदार बनो।
है घोर अंधेरा छाया हुआ,
फैली विकराल सी है काया।
अब शोर नही शहरों में कहीं
है द्वार-द्वार पर सन्नाटा।
तुम किंचित विचलित मत होना
घर पर ही सुरक्षित है रहना
यह वक्त विपत्ति का मिट जाएगा
तुम शांत धीर से डटे रहो।
सीमा में मर मिटने का
ख्वाब जो आँखों में पलते थे।
घर पर ही रहकर अब,
स्वप्न यही साकार करो।
दीप, ज्योति घर में जलाकर
देशहित कुछ जाप करो।
कट जाएगी, ये तम की राते
भोर उदित हो आएगा।
पसरा आज जो सन्नाटा
कल देश फिर जगमगाएगा
आज जो रुके घर पे कदम
कल देशहित बढ़ जाएगा।
कुछ तृप्ति करो, संतोष रखो
व्यर्थ सड़को पर नही चलो
आज वक्त मिला है विश्राम का
कुछ दिन ही तुम न शोर करो
सन्नाटे में न डूबे धरा
इसलिए आज इतिहास रचो।
देशहित गर कुछ करना है
शांतचित्त हो घर में रहो।