चाह थी पर इस तरह नहीं
चाह थी पर इस तरह नहीं


एक मुद्दत से चाह थी
की घर पर रहूँ
पति के साथ
बच्चों के साथ
पूरा परिवार इतवार मनाए
ना कोई बाहर जाये
ना कोई घर पर आए
वो भागमभाग जिंदगी की
कुछ पल थम तो जाए
की जी लूँ हर रिश्ते को
बच्चों के साथ बच्ची बन जाऊँ
साथ तेरे हमजोली बन जाऊँ।
जैसे कोई बचपन का मित्र हो
कुछ इस तरह रहे हम।
नहीं चाहती कि मेरे काम मेंं कोई हाथ बटाये
चलो इसी बहाने घर का काम कर
मेरा वजन कुछ कम हो जाये।
कोरोना का कोई रोना नहीं है
यह तो भारत भूमि है
यहाँ गंगा नर्मदा यमुना सरस्वती है
कोरोना वैसे ही धूल जाएगी।
भारत के कण कण में महादेव बसे
किसी वायरस से क्या ये धरा थर्राएगी।
धीरज रखो, धैर्य रखो
कुछ दिन अब घर पर रहो
ये काले बादल भी छँट जाएगा
सूरज के बढ़ते ताप से
ये सूक्ष्म जीव मर जायेगा।