वो मेरे अपने
वो मेरे अपने
हाथों से अपने बचपन सँवारे
उंगली पकड़ के चलना सिखाये
माता पिता सा दूजा न कोई
गोदी में जिसके बचपन में सोई।
त्याग के सुख अपने,दी है हमे खुशियाँ
लोरी में जिनके वो आती थी परियाँ
स्पर्श में जिनके स्नेह की लड़ियाँ
किस्सों में जिनके,सीखो की कड़ियाँ
सीधी कमर जब झुक जाएगी
हाथों में सहारे को छड़ी आएगी
आँखों में चश्मा, बालों की सफेदी
हर बला से बचाये, दूर कर दी बदी
उम्र के इस मोड़ में साथ है हमें चलना
बुजुर्गों ही है परिवार का गहना
साथ इनके अब हर पग में है चलना
चुभ जाए न कोई कांटा कभी
हथेली में सुरक्षित है इनको है रखना।