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Sandeep Bisht

Classics

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Sandeep Bisht

Classics

अजनबी

अजनबी

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हरे-भरे गांव को,

पीपल की छावं को,

शहूलतों को ऐसे छोड़ आया है

अजनबी तुझे आज

फिर घर याद आया है।


ऊंची चोटी वालों से,

चौतर और चौपालों से

रिश्ता ऐसे तोड़ आया है

अजनबी तुझे आज फिर

घर याद आया है।



सियासत की बाज़ार से,

शहर की रफ्तार से 

नाता कैसा जोड़ आया है

अजनबी तुझे आज

फिर घर याद आया है।



रास्ते वीरान करके,

रिश्ते हैरान करके

ये कैसा स्वांग रचाया है,

अजनबी तुझे आज

फिर घर याद आया है।


चैन की प्यास ने,

सुकूँ की तलाश ने

पल-पल तुझे सताया है

अजनबी तुझे आज

फिर घर याद आया है।


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