जो हम पे गुज़री है, उसे किसने जाना है, होठों में हँसीं है और ग़मों का खजाना है। ✍️ संदीप बिष्ट "साक़ी"
पल-पल तुझे सताया है अजनबी तुझे आज फिर घर याद आया है। पल-पल तुझे सताया है अजनबी तुझे आज फिर घर याद आया है।