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Dimpy Goyal

Abstract

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Dimpy Goyal

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कश्मकश

कश्मकश

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दिल क्या करें , सुनता कहाँ पेट किसी की

थोड़ा थोड़ा रोज़ खा जाए,  मेरे गुमान को 


ज़रूरतें मेरी मुझे, हर लम्हा मारा करें 

कब तक ज़िंदा रख सकूँगा मैं ईमान को 


कितनी दफ़ा हुआ, मैं ग़ुस्से को पी गया

बोलना ही ना, सिखा पाया ज़ुबान को


मैं अंधेरे में निकलूँ, सूरज ढलने के बाद लौटूँ

तभी तो ना जान पाऊँ , फ़ितरते जहान को 


देखें ज़माना क्या लगाएगा,  बोली मेरी 

कहते हैं , अब आदमी,  बेचे इन्सान को


 एक अंगड़ाई से भी, छोटा है आशियाँ 

दिल बता कहाँ पे रखूँ, इस भगवान को 


मेहरतें तो उसकी नहीं बरसी,  अरसा हुआ 

भले मैं रोज़ पढ़ता हूँ , गीता और कुरान को 


साजिशों की आँधी में सब कुछ बिखर गया 

क्या करूँ ऐसे में , बचा के इस जान को 


ज़मीनी आदमी हूँ, ख़ुदा ज़मीन पे ही रखना 

 छूने की नहीं कोई तम्मना आसमान को 


दिल की हर उम्मीद घायल, आरज़ू न रही कोई 

फिर से अब कैसे बसाऊँ , इस बियाबान को 


खिलती कलियों, ख़ुशबू से दोस्ती है उसकी

भँवरे से भला क्या वास्ता है , बाग़वान को 


लूटा है सबने बार बार, मैं कश्मकश में हूँ ,

दुनियादारी कैसे सिखाऊँ , दिल ए नादान को।


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