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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

Classics

रामायण १९ मुनि भारद्वाज दर्शन

रामायण १९ मुनि भारद्वाज दर्शन

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बोले गुह निषादराज जी

कुछ दिन और रहूँ मैं साथ

चले गुह को साथ में लेकर

मानी प्रभु ने उनकी बात।


वन में चले, पहुंचे प्रयाग में

त्रिवेणी के दर्शन थे किये

स्नान और पूजन किया वहां पर

 भरद्वाज आश्रम हो लिए।


आनंदित मुनि हुए बहुत थे

प्रयागवासी भी वहां आ गए

ऋषि मुनि जो कथा सुनें वहां 

राम उनको थे बहुत भा गए।


रात बिताई थी कुटिया में

सुबह पूछें किस मार्ग जाएँ

मुनि ने शिष्यों को बुलाया

उत्साह में पूरे पचास थे आये।


चुनकर चार ज्ञानी ब्रह्मचारी

रामचद्र के साथ कर दिए

जंगल में कुछ दूर पहुंचकर

वो चारों विदा थे किये।


यमुना जी के पास पहुंचकर

स्नान करें, थकान मिटाएं 

तेज का पूंज, छोटा स्वरुप

तापस एक तपस्वी आये।


इष्टदेव के दर्शन करके

आनंद मिला तपस्वी तापस को

गुह को राम कहें तुम जाओ

वो भी चले अब अपने घर को।


जिस भी गांव से निकलते तीनों

लोगों की वहां भीड़ लगे

सुनकर रामचंद्र की महिमा

आते हैं सब भगे भगे।


तीनों वन वन घूम रहे हैं

मुनियों के वल्कल वस्त्र हैं

जो भी मिले और तेज को देखे

सोचे मुनि या राजकुंवर है।


स्त्रियां सीता जी से पूछें

सुँदर राजकुंवर ये कौन

जानकी जी को लज्जा आ गयी

पर तोड़ दिया उन्होंने मौन।


बोलीं ये जो गौर वर्ण हैं

ये मेरे देवर लक्ष्मण

और दूसरे पति हैं मेरे

सुंदर श्याम है जिनका तन।


स्त्रियां आशीष दें सीता को

सदा सुहागन बनी रहो

लक्ष्मण पूछें वहां लोगों से

सुगम मार्ग जो हो कहो।


सुँदर कथा राम और लक्ष्मण की

चारों और वहां छाई थी

राम आगे चलें, सीता जी बीच में

उनके पीछे चलें लक्ष्मण जी।


सीता देखें राम चरणचिन्ह

बच के उनसे पैर धरें

दोनों के चिन्हों पर पैर लगे न

लक्ष्मण थें दाहिने चलें।


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