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Brijlala Rohan

Romance Classics Inspirational

4.2  

Brijlala Rohan

Romance Classics Inspirational

दिल ढूंढता है !

दिल ढूंढता है !

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 दिल ढूंढता है न जाने किसे !


मन ही मन कुढता रहता न जाने किसके बिन !

न जाने इसे चाहत रहती हरपल किसकी ?

बिन उसके न राहत,न ही चैन- सुकून मिलता इसे ! 

दिल ढूंढता रहता न है न जाने किसे ? 


हर ख्याल में बस उसी का पहले ख्याल रहता है।

मैं ख्वाब देखूं खुद के लिए जब,

तो पहले उसी का ख्वाब आता है !    

न जाने वो भी मुझे खोजती होगी कभी !

पर इसकी परवाह किये बिन दिल ढूंढता है उसे ! 


कितने दिन हो गए मिलना उससे,

कितने बरस बीत गए बिन बात किए उससे !

दिल की बात दिल में ही रखे रहता मैं अपनी।

कहना चाहूं तो भी मैं कहूं किससे !

सिवाय उससे ! दिल ढूंढता है उसे !

दिल चाहता है उसे दिल में ही ढूंढते हुए ढूंढ लेना।


न जाने कितने जन्मों का अटूट प्रेम का

पावन - परिणय रिश्ता है, हमारा !

वो मेरे उर में अमिट स्याही से अंकित हो गई हैं

इस तरह जिस तरह होती है चंदा-चकोर का आलिंगन। 

हर दिन मैं दिल में सोलह-श्रृंगार करूं उसका।

हर दिन की शुरुआत का पहला नाम उसका ।           


दिल ही दिल से पूछता है, पता उसका !

दिल ही दिल में ढूंढता है उसे ! हाँ दिल ढूंढता है उसे !

दिल ढूंढता रहता उसे !

आखिर दिल चाहता है उसे तो दिल ढूंढे किसे ?


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