दिल ढूंढता है !
दिल ढूंढता है !
दिल ढूंढता है न जाने किसे !
मन ही मन कुढता रहता न जाने किसके बिन !
न जाने इसे चाहत रहती हरपल किसकी ?
बिन उसके न राहत,न ही चैन- सुकून मिलता इसे !
दिल ढूंढता रहता न है न जाने किसे ?
हर ख्याल में बस उसी का पहले ख्याल रहता है।
मैं ख्वाब देखूं खुद के लिए जब,
तो पहले उसी का ख्वाब आता है !
न जाने वो भी मुझे खोजती होगी कभी !
पर इसकी परवाह किये बिन दिल ढूंढता है उसे !
कितने दिन हो गए मिलना उससे,
कितने बरस बीत गए बिन बात किए उससे !
दिल की बात दिल में ही रखे रहता मैं अपनी।
कहना चाहूं तो भी मैं कहूं किससे !
सिवाय उससे ! दिल ढूंढता है उसे !
दिल चाहता है उसे दिल में ही ढूंढते हुए ढूंढ लेना।
न जाने कितने जन्मों का अटूट प्रेम का
पावन - परिणय रिश्ता है, हमारा !
वो मेरे उर में अमिट स्याही से अंकित हो गई हैं
इस तरह जिस तरह होती है चंदा-चकोर का आलिंगन।
हर दिन मैं दिल में सोलह-श्रृंगार करूं उसका।
हर दिन की शुरुआत का पहला नाम उसका ।
दिल ही दिल से पूछता है, पता उसका !
दिल ही दिल में ढूंढता है उसे ! हाँ दिल ढूंढता है उसे !
दिल ढूंढता रहता उसे !
आखिर दिल चाहता है उसे तो दिल ढूंढे किसे ?