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Dr. Tulika Das

Classics Inspirational

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Dr. Tulika Das

Classics Inspirational

हिन्दी -भाषा के चेहरे की बिंदी

हिन्दी -भाषा के चेहरे की बिंदी

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चमकती है मेरे अंदर,

रोशनी है कितनी सुंदर,

मीठी मीठी है बोली,

जो कहीं,वही लिख डाली,

आधे को आधा कहा, पूरे को पूरा हक मिला,

कहीं कुछ छुपता नहीं, कहीं कुछ दबता नहीं,

ऐसी भाषा मिलेगी नहीं,इतनी सच्ची है हिंदी।


पूरब से पश्चिम तक, उत्तर से दक्षिण तक,

कुछ कम कहीं बोली जाए,

कुछ कम कहीं समझी जाए,

हर जगह यह पाई जाए,

आंचल सब पर है फैलाएं,

सब है इस आंचल में समाए,

ऐसी ममतामयी है हिंदी।


हर युग के साथ कदम मिलाए,

अपनी पहचान ना गवाएं,

जो मिले समय की राहों में,

देशी और विदेशी आए,

अपना सब को बनाती जाए,

ऐसी अनोखी है हिंदी, प्यारी सखी है हिंदी।


सुंदरता से भरी हुई,

स्वर और व्यंजन से रची,

अलंकारों से सजी हुई,

(चंद्रबिंदु ) का टीका लगाए,

(हलंत) छनकाती जाए,

धीमे-धीमे मुस्कुराए , पास बुला के गले लगाए,

मोह सब में जगाए, ऐसी मनमोहिनी है हिंदी।


कभी मीरा के भजनों में,

कभी तुलसी की चौपाइयों में,

कभी कबीर के दोहे में,

दुनिया ये घूम आएं,

हर रुप, हर श्रृंगार में ये मन भाये,

ऐसी मनभावन है हिंदी।


कभी मिलन के सुख में, कभी विरह की पीड़ा में,

शब्द ये छलकाती जाए,

सातों सुर संगीत के,

"सा" से "सा" तक,

ये गुनगुनाती जाए,

गीतों का मीठा सागर है हिंदी।


धर्म और पंथ के परे,

जाती का भी भेद ना जाने,

हर आम और खास की सगी है हिंदी,

सबको जोड़ती है हिंदी।


जीवन धारा बन के हिंदी,

भारत में बहती जाए,

है ये सबके मन में समाए,

तभी तो हिंदी राष्ट्रभाषा कहलाए।


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