ज़ब समर्पण होता है अस्तित्व का
ज़ब समर्पण होता है अस्तित्व का
हृदय की मृदु कोमल भावनाओं में,
कदाचित कोई विराम संभव नहीं ;
जीवन के सतत व समग्र लय में,
किसी अल्पविराम का उद्भव नहीं !
सांसों का अर्ध्य स्वीकार जहाँ होता है,
वहाँ ह्रदय का बंधन एक उपहार होता है !
संवेंगों की ऊष्मा की उमग्र थरथराहट,
अतिशय प्रेम पिपासा की अकुलाहट !
जब समर्पण होता है पूरे अस्तित्व का,
वहां एहसास होता है बेहद अपनेपन का !
प्रेम सदा से अलौकिक रहा है और दुर्लभ भी,
सच्चे मन, निःस्वार्थ भाव से सहज़ सुलभ भी !
