ग़ज़ल
ग़ज़ल
कर दिया है उसने मुझको, आज तन्हा, क्या करूँ।
दर्दे दिल पर हँस रही है, सारी दुनिया, क्या करूँ।।*
ये तमाशा मैं ना समझा, मैं ना समझा, क्या करूँ।
दिल तो ज़ख्मी कर ही डाला, अब मैं बदला, क्या करूँ।।
बे-सबब करता नहीं है, हल परेशानी कोई।
छोड़ कर दुनिया की दौलत मैं, तुम्हारा, क्या करूँ।।
ज़िंदगी कितनी कठिन है, हर किसी के वास्ते।
हर कोई उलझा हुआ है, मैं अकेला, क्या करूँ।।
सोचकर बदले हैं उसने, मुझसे अपने रास्ते।
उसके बिन बतलाओ, वीराने में रस्ता, क्या करूँ।।
छोड़ने के फैसले से यूँ नहीं हूँ मुत्मइन।
हर कसौटी पर उसे, सौ बार परखा, क्या करूँ।।
इश्क़ दर्दे सर है, बस ये जान लो, ज्ञानेश्वर।
इसपे अब मैं गुफ्तगू, इससे ज़्यादा, क्या करूँ।
