STORYMIRROR

Gyaneshwar Anand GYANESH

Inspirational

5  

Gyaneshwar Anand GYANESH

Inspirational

ज्ञानेश्वर आनन्द ज्ञानेश

ज्ञानेश्वर आनन्द ज्ञानेश

1 min
466


देने से घटता नहीं, बढ़ता है दिन-रात।

विद्या-धन संसार में , बाँट सके नहि भ्रात।।


जगत में भ्रष्टाचार का, फैला ऐसा जाल ।

सत्य भुला कर मित्र भी, कुटिल चले है चाल।।

   

भ्रष्टाचारी मौज करें, हैं परिश्रमी मलाल।

शिक्षा के घोटाले में, लोभी फँसे दलाल।।


देखो निंदकों का तुम, दिल से करना मान।

 जिनसे भीतर छुपि कमी, का मिलता है ज्ञान।।


रोज नए प्रयोग काव्य, सिरजन का हो ध्यान।

 त्याग कुरीति सँसार की, करो काव्य सोपान ।।

   

मिटे साँसारिक कुरीति, अरु दूर हो अज्ञान।

 सम्मान धनी का होवै, निर्धन का भी मान।।

   

रोज नए प्रयोग काव्य, सिरजन का हो ध्यान।

 त्याग कुरीति सँसार की, करो काव्य सोपान ।।

   

साँसारिक कुरीति मिटे, अरु दूर हो अज्ञान।

सम्मान धनी का होवै, निर्धन का भी मान।।

   

उल्टे सीधे ढंग से धन, कमाने लगे हैं लोग।

अब बेटियों का धन भी, खाने लगे हैं लोग।।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational