संस्कार
संस्कार
अंधकार में फसा हुआ है,
हमारे सभी संस्कार,
अब भी समय है सम्हल जाओ,
ना करो यू चित्कार।
देखते हुए भी हम धर्म को,
अधर्म की ओर धकेल रहे,
अनजाने में हम अपना ही,
जीते जी कब्र खोद रहे।
ना जाने कब ये तम के घेरा,
मन से दूर हो जायेगा,
ना जाने कब प्यार के दीप,
फिर से जल पाएगा।
