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LALIT MOHAN DASH

Abstract Classics Inspirational

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LALIT MOHAN DASH

Abstract Classics Inspirational

दीवाली

दीवाली

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आते आते आ गई, दीवाली भी पास।

बाजारों में धूम है, रैली का आभास।।


धन संचय भी व्यर्थ जब, नही किया उपभोग।

धनतेरस पर क्या लिया,पूछ रहे सब लोग।।


दूर रहेगी आपदा,और समृद्धि समीप।

चतुर्दशी की रात में,रखो ओलती दीप।।


सजरी लिपाई हो गई, रंगोली की धूम।

आंगन मिथिला अल्पना,सजनी रचती झूम।।


शलभ तुम्हारी प्रीत का,अजब निराला ढंग।

दीपशिखा जैसे जली,जल जाते तुम संग।।


लौ दीपक की झूमती,मंथर पागल वात।

पूनम से जगमग हुई,अमानिशा की रात।।


हर्षित नभ के देवता, दीपों का त्योहार।

रख देते हैं व्योम में, अगणित दीपक बार।।


मन है बाती सूत की, भावुकता का तेल।

तन मिट्टी का दीप है, मधुकर अदभुत मेल।।


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