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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Tragedy Classics

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Tragedy Classics

खोया खोया सा चांद

खोया खोया सा चांद

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सूना सूना सा आसमां 

भीगी भीगी सी रात 

बहकी बहकी सी पवन 

लुटे पिटे से नजारे

गुम सुम से बादल 

अनमने से सितारे 

और खोया खोया सा चांद। 


अस्त व्यस्त सा समां 

झीनी झीनी सी चांदनी 

उदास सी सरिता 

रुके रुके से पर्वत 

खामोशी में डूबी घाटी 

सन्नाटे में पसरा गांव 

व्याकुल से वृक्ष 

कंपकंपाते से पत्ते 

मरी मरी सी जिंदगी 

और खोया खोया सा चांद। 


सिमटे सिमटे से अरमान

बेजान सी धड़कन

बेचैन से ज़ज्बात

मचलता सा दिल

तरसती सी निगाहें

लरजते से होंठ

और खोया खोया सा चांद।


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