क्या कहूँ ?
क्या कहूँ ?
ऐ जिन्दगी तू जरा गौर करना,
उनको तू जरूर बता देना,
जो पूछते हैं मेरा घर और ठिकाना,
क्या कहूँ ?
जो सोचते हैं मुझे बेगाना।
कोई मुझे यहाँ मुसाफिर समझते,
बार बार मुझे सब ताकते रहते,
कोई समझने की कोशिस नहीं करते,
क्या कहूँ उन्हें ?
जो दर्द हैं देते|
खोने को तो अब मेरे पास कुछ नहीं,
पाने को क्या है,वो पता नहीं,
सीने से दर्द अभी मिटा नहीं,
क्या कहूँ ?
ये दिल सुनता नहीं|
हम तो वफ़ा ही करते गये,
अपनी वादे सारे निभाते गये,
पर, वो हमें क्यों छोड़ गये,
क्या कहूँ ?
हम अधूरे ही रह गये|
वो घर अब हम छोड़ दिए,
ठिकाना भी हम अब भूल गए,
वो जो अब देखो बेवफा हो गये,
क्या कहूँ ?
कैसे उन्हें अब भूल जायें ?
अब तो इतना काम करना,
उन्हें समझाने की तू कोशिश करना,
भूल के भी कभी भूल न करना,
क्या कहूँ ?
किसी का दिल नहीं तोड़ना|
ऐ जिन्दगी तू जरा गौर करना...