“ राम की भूमि”
“ राम की भूमि”
अनगिनत बातें मेरे
मानोमस्तिक में मौजूद हैं
किस – किस को सुनाऊँ मैं
बातों की परत को भला
खोलूँ तो किसके सामने ?
हैं कहाँ वक्त लोगों को
इस जमाने में
जो भूलके दो घड़ी
बैठ भी जाएँ
सुनें किसी के फ़साने को !
खुशी हो या हो
गम की बारिश
उन्हें शरीक होना भी
गवारा नहीं है !
गिरे जो दुख की अश्रुधारा
कहाँ कोई उसको पोछता है
चुभे जो पग में काँटे तो
कहाँ कोई उपचार करता है !
भले हो कान सारे बंद
सभी के मुँह में ताले हों
ना देखे दुख किसी का भी
उसे मैं क्या कहूँगा ?
मैं चुप कैसे रहूँगा
एक नहीं सौ बार कहूँगा !
नारी सशक्तिकरण ,
सम्मान ,
आबरू का
मंत्र आखिर कहाँ गया ?
हमारा राज्य जल रहा है
झुलस रहा है
और हम सब
आस्था के दीपक
जला रहे हैं ?
राम की भूमि को
रावण के हवाले कर रहे हैं !!
