राख की आंख से
राख की आंख से
मैं पतझड़ का शिकार शाख हूँ
कलि कोमल का शेष आस हूँ
एहसास जो रूठे छूट गए
उन्हें बहलाने का प्रयास हूँ।।
मत छेड़ो तराना शायराना
आज आलाप विलाप लगता है,
रूखी हवाओं की तीख़ी बेरूख़ी का
राह रोकने का कयास हूँ।।
आह भरने की चाह थी मगर
होंठ सी, लिए दर्द पी लिए
जला ख्वाबों को सहलाता हुआ
कोई सुलगता एहसास हूँ।।
मत पूछो छनक पायलों की
छिपी छलावा के तले झनकार
इनकारों को नकारने के बाद
एक बेबस सा इकरार हूँ।।
ख़ैर करता हूँ मेहेर उसकी
साँस शेष है कुछ आज भी
नहीं झुकूंगा नहीं रुकूँगा मैं
आश अटूट ठोस विश्वास हूँ।।