राह विचल -राह अविचल
राह विचल -राह अविचल
"कर्म ,धर्म - पंथ से पारंगत" ,
कार्य कुशल व स्वस्थ मन ,अश्वमेध की राह पर,
तन अर्पण और मन अर्पण
बंधन का अभिषेक पथ ,राह विचल - राह अविचल!
कर्म ही पहचान है, भेष बदलता संसार है ,
मंजिलों की राह पर, दृढ़ परिश्रमी प्रयास कर,
बारम्बार कयास पर , कर्मयोग का घोर अविरल,
ईश्वर सा सौभाग्य धन्य , राह विचल- राह अविचल!
गुण-अवगुण समान मार्ग पर, यह हंसी का खेल नहीं,
प्रसन्नता की माप है, यह कर्म ही परिणाम है ,
पाप- पुण्य का फेर कहीं , कहीं प्रभाव- अभाव का द्वार है,
मस्तक की लकीरों का दर्पण, राह विचल- राह अविचल!
रुक जहां गया, जहां वहाँ रुक गया ,
गांधी का सत्य, आजादी का मत अहिंसा,
अंबेडकर का नैतिक मूल्य, सुभाष का आत्म गौरव और,
लोकतंत्र का मूल अमर, राह विचल- राह अविचल!
कृष्ण जीवन के सारथी उपदेश, देते अर्जुन को धर्म पालन,
समय-समय पर बदलते अधिकार है,
मस्तक की मझधार में, कर्म बड़ा बलवान है,
कर्म पथ पर सघन रथ, राह विचल - राह अविचल !
