गहनों के ताज
गहनों के ताज
मैं सोचती हूं की हर बीते क्षण में क्या नया है
वो गीत कौनसा है जो कोयल ने अभी गाया है,
ये कैसी तान छेड़े है बदली सलेटी नभ मंडल में
क्या राग मल्हार बरस रहा है आज की बरखा में,
ये बच्चे जो कागज़ की कश्ती चला रहे पानी में
क्या कहना चाह रहे हैं ये मगन अपनी मौज मस्ती में,
फिर सोचूं के दिन के बाद रात का आना क्या नया है
ये चक्कर तो बरसों से समझता आया ये जमाना है,
हर क्षण ने खु़द तय की है निश्चतता अपनी
हर चक्र जीवन का घूम रहा है कायदे से अपनी ,
ना कुछ ही नया है यहां ना कुछ नियम बदला सा है
ये धरती, चंद्रमा का अंतरिक्ष में चक्कर पुराना सा है,
गर है कुछ नया सा यहां तो....
मेरी नवीन चंचल शोखी, मेरा खु़द से प्यार, मेरी चाहत
ये काजल, सुर्ख लाली, लहराते घने काले बालों की आहट
ना नज़म, ग़ज़ल, ना किसी शायरी की मोहताज हैं ये
मधम से बयां करते ख़ामोश सलीके हैं, नर्म अंदाज़ हैं ये।