स्व-मंथन
स्व-मंथन
न आराध्य की आराधना में,
हिय विलीन स्व मंथना में।
लक्ष्य में दृढ़ संकल्पियों के
कथ्न असत्य न दृढ़ियों के,
विस्मृत निज संसृति करते
ध्येय पूर्णता की मंथना में।।
व्यर्थ गतागत से विचलित,
न कर्मों से द्रुतगामी होते।
खोए धीरज को प्रायः पाते
स्वालीन होके साधना में।।
हैं वीर विपिन विध्वंसक तो
रण में, मिथ्या संहारक भी
तज् सुखाय् परम् हिताय्,
रहते लीन इसी वन्दना में।।
न आराध्य की आराधना में
हिय विलीन स्व-मंथना में।।