माता शांत स्वरुप
माता शांत स्वरुप
माँ तू दुर्गा है तो अदम्य साहस है,
हर चुनौती से लड़ने का अभ्यास है।
जब पाप बढ़े, तू रौद्र रूप धारती,
शक्ति का वह क्रांति चक्र संवारती।
तू लक्ष्मी है, जहाँ स्नेह का संचार है,
वहाँ तृप्ति है, संतोष का विस्तार है।
मन के द्वंद्व जब होते हैं शांत,
तब तेरे ही रूप में मिलती शांति अनंत।
जब घोर अँधेरा मन को है घेरे,
तू कालरात्रि बन आती है मेरे।
भय, भ्रम, अज्ञान का करती है संहार,
हर निराशा के अंधकार का अंत है तेरा प्रहार।
तू ही दार्शनिक है, जीवन का सार,
तेरे चिंतन में छिपा है संसार।
तेरे वचन हैं सत्य, समय से परे,
हर काल, हर युग में तू ही प्रासंगिक रहे!
