सम्भल जरा!
सम्भल जरा!
नफरत के रास्तों पर उलझने है,
तू रुक जरा!
फ़ूलों की बहार में कांटे भी है,
सम्भल जरा!
महकती हसरतें की हिलोर है
तक जरा!
फितरती चमक ग़मगीन है
थम जरा!
फलक की मंजर बदनसीब है
हट जरा!
परम का शिखर दृढ़ है
चल जरा!
स्वपन है अगर सच्चा तो
उदय हो जरा!!
