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Dr.Narendra kumar verma

Fantasy

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Dr.Narendra kumar verma

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नफरतो की दुनिया मे, ना हवा लगे, ना साँस लगे

नफरतो की दुनिया मे, ना हवा लगे, ना साँस लगे

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नफरतो की दुनिया मे,
ना हवा लगे, ना साँस लगे,
संवर संवर कर बदलते है यहां,
पेशे मे मुकद्दर तो बहुत है!

रास आए या ना आए,
परवाह करते तो,
हम भी संवर लेते,
मंजर के सिलसिले भी चलते हैं!

बदल बदल कर रख देते हैं,
दामन में आए हर हिस्से को,
पावन हो जाते हैं रिश्ते,
काफिलों का तूफान थमते ही!

जरा सम्भल सम्भल उठें कदम,
हर समा परिंदा है,
नफरतो की दुनिया मे,
ना हवा लगे, ना साँस लगे!


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