सांवली सलोनी
सांवली सलोनी
जब तू सज संवर कर किसी बाग में जाती है
अपनी शोख निगाहों से
जब बिजलियां गिराती है
अधखुले से शरबती होंठ
गजब क़यामत बरपाते हैं
मतवाली चाल पे आशिक
दिल कदमों तले बिछाते हैं
ये अलमस्त जवानी देख देख
चांद शर्म से कहीं छुप जाता है
मदमस्त बदन की खुशबू पा के
बहारों का मौसम नजरें चुराता है
तेरी एक झलक पाने के लिए
आसमां भी झुक झुक जाता है
टिमटिमाना भूल जाते हैं सितारे
जब बिंदिया का लश्कारा आता है
धैर्यवान सागर भी बेचैन होकर
तेरे कदमों में ही सुकून पाता है
चेहरे पे बिखरतीं हैं जब जुल्फें
बादल को भी पसीना आता है
तुझे बनाकर खुदा भी खुद
अपनी रचना पे इतराता है
तेरे हुस्नो जमाल का वर्णन तो
कोई "जायसी" ही कर पाता है
तू पद्मिनी है या है उर्वशी
या रंभा मेनका अप्सरा है
तेरे ख्वाबों का मैं आसमां
मेरे मन की तू प्रिय धरा है।