STORYMIRROR

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Classics Fantasy

4  

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Classics Fantasy

सांवली सलोनी

सांवली सलोनी

1 min
205

जब तू सज संवर कर किसी बाग में जाती है 

अपनी शोख निगाहों से 

जब बिजलियां गिराती है 


अधखुले से शरबती होंठ 

गजब क़यामत बरपाते हैं 

मतवाली चाल पे आशिक 

दिल कदमों तले बिछाते हैं 


ये अलमस्त जवानी देख देख 

चांद शर्म से कहीं छुप जाता है 

मदमस्त बदन की खुशबू पा के 

बहारों का मौसम नजरें चुराता है 


तेरी एक झलक पाने के लिए

आसमां भी झुक झुक जाता है 

टिमटिमाना भूल जाते हैं सितारे

जब बिंदिया का लश्कारा आता है 


धैर्यवान सागर भी बेचैन होकर 

तेरे कदमों में ही सुकून पाता है 

चेहरे पे बिखरतीं हैं जब जुल्फें

बादल को भी पसीना आता है 


तुझे बनाकर खुदा भी खुद 

अपनी रचना पे इतराता है 

तेरे हुस्नो जमाल का वर्णन तो 

कोई "जायसी" ही कर पाता है 


तू पद्मिनी है या है उर्वशी 

या रंभा मेनका अप्सरा है 

तेरे ख्वाबों का मैं आसमां 

मेरे मन की तू प्रिय धरा है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance