राब्ता
राब्ता
कितना प्यारा कितना अनोखा रिश्ता है तुझसे,
बंधा है यह किस डोर से कौन सा बंधा सूत्र है तुझसे।
मेरे मन की हर बात जाने कैसे बूझ लेते हो,
जादूगर हो या मेरा कोई पहले का नाता है तुझ से।
तेरे संग करके पल भर भी बातें,
भूल जाती हूँ अपने सारे ग़म,
यह कैसा अजीब वास्ता है तुझसे।
क्या इसे दोस्ती कहूँ या कुछ और,
मेरा मीठा-मीठा सा कुछ राब्ता है तुझसे।

