प्यार -या छल
प्यार -या छल
यह वादे तुम्हारे झूठे थे
बातें सब झूठी थीं,
हर बार छलावा होता था,
हर बार भुलावा होता था।
वह यौवन का ज्वार गया
पर प्यार पनप कहॉं पाया,
तुम प्यार के क़ाबिल ही न थे
यह समझ देर में आया।
शब्द तुम्हारे बाण थे
मर्म को बेधते थे,
हर बार निराशा होती थी
हर बार सपने बिखरते थे।

