प्यार हर उम्र में जायज।
प्यार हर उम्र में जायज।
मैं जब बाहर बैठ
अपना चश्मा साफ करता,
वो सामने बॉलकनी पे आती,
और हाथ हिलाती,
फिर मुस्कुराती हल्के सेे कुर्सी पेे बैठ जाती,
अपने ओपरे दांत लगाती,
और रेडियो की आवाज बढ़ाती,
मुझे दिल फेंक गाना सुनाती।
मैं अपना मोबाइल निकालता,
उसके हुस्न की तारीफ कर डालता।
तुम आज भी सत्रांह की हो मेरे लिए,
तुम्हारी हर अदा आज भी कातिल,
बंदा एक तुम्हारी मुुस्कुराहट पे,
जवान हो जाए,
और ये बॉलकनी तक बिना सीढ़ियां पहुुंच जाए।
वो भी अपना मोबाइल उठाती,
फ्लाइंग किस की इमोजी भेेेज डालती।
फिर मैं उसके सर पे जो चांदी के वाल,
उनपे करता पेश अपने जज्बात।
ये खुदा ने किया कैसा कर्म,
सर पे चांदी चेहरे पे शकुन,
लेकिन जुल्फें अब भी खोलो,
तो बंदा कह देे ग़ज़ल।