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Amar Singh Rai

Classics

4  

Amar Singh Rai

Classics

पवन पुत्र

पवन पुत्र

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पवन पुत्र फिर चल निकले


मेघनाद ने मारी शक्ति,

 रण में लखन अचेत हुए।

   देख मूर्छित लखनलाल को,

    वानर भालु सचेत हुए।


समाचार राम ने पाया,

 आतुरता व्याकुलता छाई।

   नंगे पैरों दौड़े आए,

    बोले कौन मुसीबत आई।


रावण भ्रात विभीषण ने,

  समझी व्याधि पूर्ण-रूपेण।

   लंका जाकर हनुमान ले,

     आये खटिया सहित सुखेण।


वैद्यराज ने आ बतलाया,

  लागी शक्ति बड़ी अपूर्व।

    मृतसंजीवनी बूटी चहिए,

     प्रभात पहली किरण पूर्व।


लेकर आज्ञा श्रीराम से,

  पवनपुत्र फिर निकल पड़े।

    रामादल में मायूसी थी,

     देख लखन को भूमि पड़े।


उधर पवनसुत पर्वत सागर,

  नदियां करते जाते पार।

    नीच निशाचर कालनेमि का,

      करते गए जीवनोद्धार ।


नहीं समझ पाए औषधि तो

  ले पर्वत को साथ उड़े।

    जान निशाचर भरतलाल ने,

      मारा तीर गिर भूमि पड़े।


जान सत्य श्रीराम प्रभू का,

  भरत ने पश्चाताप किया।

    बिन जाने बिन सोचे बूझे,

     मैंने बड़ा आधात किया।


भेंटे सजल नेत्र से दोई,

  समाचार संक्षिप्त सुनाए।

   लेकर आज्ञा भरत जी से,

     उड़ हनुमान रामदल आए।


छायीं खुशियाँ रामादल में,

  सबकी पूरी हुई शुभेच्छा।

   समय पूर्व वापिस आने पर,

     पूर्ण हुई हनुमान प्रतीक्षा।


   


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