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कवि काव्यांश " यथार्थ "

Tragedy Classics Inspirational

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कवि काव्यांश " यथार्थ "

Tragedy Classics Inspirational

"पुत्र का उत्तरदायित्व"

"पुत्र का उत्तरदायित्व"

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कविता शीर्षक: “पुत्र का उत्तरदायित्व” (एक भावनात्मक, प्रेरणादायक और साहित्यिक अभिव्यक्ति) ---


माँ की झुकी पीठ,
कहती है कुछ,
बापू की कांपती उँगलियाँ
बयाँ करें कुछ,
पर बेटा हैं व्यस्त,
दुनियादारी में,
कहाँ सुन पाए वो
सिसकते वचनों के नर्म कहर।

छत थी उनके लिए
जब बेटा बना था घर,
पर अब उसी घर में
कोना भी नसीब नहीं,

आग जलाई बेटे ने
अपने ही सुख में,
माँ की रसोई अब
धुएँ से भी खाली रही। 

थाली में दाल की जगह
आँसू हैं अब,
और रोटियाँ भी 
यादों से पकती हैं अब,

पिता की आँखें
गीली होती हर शाम,
माँ की लोरी अब
गुमसुम रहती हरदम।
 

क्या पुत्र होने का अर्थ
बस जनम देना होता?
या फिर उसके भी 
कुछ धर्म, कुछ करम, 
होतें निभाने को।

उम्र के हर पड़ाव पर,
जैसे माँ ने बाँधा था
जीवन भर का
वो स्नेह, वो प्रेम।

समय मौन रहता है,
पर मौन भी गूंजता है,
जब लौटता है वही संतान,
एक दिन दरवाज़े पर,
तो न माँ बचती है तब,
न वो थाली, न वो छाँव,
बस बचती है तो एक याद —
जिसे कोई शब्द भी कभी
पूरा नहीं कर सकता।

 और तब...
जब
उस पुत्र को रोटियों में
नमक कम लगे, या
अकेलापन दिल को चीरने लगे,

तो उसे याद आता है —
वो एक कमज़ोर बुज़ुर्ग चेहरा,
जो न गिला कर सका,
न शिकायत।

हे मानव! मत भूल
वो उंगली
जिसने चलना सिखाया,
मत छोड़ वो आँचल
जिसमें तूने स्वप्न सजाया।

धर्म और पूजा मंदिरों में नहीं —
माँ-बाप के चरणों में होता है स्वर्ग।

पुत्र बनना सौभाग्य है,
पुत्रार्थ निभाना परम धर्म है।
वरना फिर…

समय लौटता है,
और साथ लाता है —
वो पीड़ा…
जो तूने किसी और
को दी थी कभी। ---

 "माँ-बाप का प्यार कर्ज़ नहीं —
वो आशीर्वाद है,
जिसे लौटाया तो
नहीं जाता है कभी,
बस निभाया जाता है।" 🌿



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