शीर्षक:- हिन्दी हैं आत्मा हमारी ।।
हिन्दी है आत्मा हमारी,
संस्कृत से जिसका नाता है,
जग में फैली भाषाओं में,
यह सबसे मधुर प्रभाता है।
हिन्दी है आत्मा हमारी,
भारत की पहचान है,
इसमें हैं कण कण वाणी
इसकी यही शान हैं।।
शब्द - सुमन जब खिलते इसमें,
मधुर रस बरसाते हैं,
जन जन के उर में
मधुर भाव जगाते हैं।।
वाणी की मधुर धारा
हिंदी का अभिमान,
संस्कृति की ज्योति से
जगमगित इसका गान।।
संस्कृत की गम्भीरता,
हिंदी की मधुरता,
मिलकर रचती ज्ञान-दीप
जग की संपूर्णता।।
"मातृभाषा" का गौरव इसमें,
**"संस्कार" की मधुर छाया है,
शब्द-शब्द में जीवन धड़कन,
हर अक्षर में गंगा-माया है।।
यह नहीं मात्र उच्चारण केवल,
यह भावों का सागर गहरा है,
"वसुधैव कुटुम्बकम्" का संदेश लिए
हर मन को जोड़ने का सेहरा है।
हिन्दी से खिलते हैं उपवन,
रस, छंद, अलंकार सजाते हैं,
सत्य, प्रेम, करुणा के स्वर
इस भाषा में गीत बन जाते हैं।।
"आनन्द" की ज्योति जलाती,
**"समता" का दीप प्रज्वलित करती,
हिन्दी केवल वाणी ही नही
जीवन की धारा को निर्झर करती।।
अक्षर-अक्षर दीप-सा
आलोकित कर जीवन,
जन-मन में जोड़ें हरदम
भाषा बने बंधन।।
आओ इस हिन्दी दिवस पर
प्रण लें हम सब मिलकर,
वाणी की पवित्र ज्योति को
ले जाए, नभ तक लेकर।।
आओ प्रण करें इस क्षण सब,
हिन्दी का मान बढ़ाएँगे,
"जननी-जन्मभूमिश्च" के संग
मातृभाषा को शीश नवाएँगे।
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित रचना
लेखक :- स्वाप्न कवि काव्यांश "यथार्थ"
विरमगांव, गुजरात।