"वीर पुत्रों की अमर गाथा" (एक मां की वेदना)
"वीर पुत्रों की अमर गाथा" (एक मां की वेदना)
एक मां की आंखों में अश्रु का सागर,
और सीने में गर्व का असीम समंदर,
जिसने जन्म दिया दो ऐसे लालों को,
जो देश की खातिर चढ़ गए
रण के आँगन पर।
एक पत्नी होकर पति को खोया,
मांग का सिन्दूर रणभूमि में खोया,
फिर भी सिर झुकाकर नहीं,
सीना तानकर बोली —
"ये सौभाग्य है मेरा,
वो भारत मां की गोद में सोए।"
फिर विधि ने अग्नि-परीक्षा ली दुबारा,
पुत्र ने भी शौर्य की राह चुनी,
सीना चीर के दुश्मन के गढ़ में कूदा,
"जय हिन्द" के नारे की गूंज में
अपनी सांसें खो दीं।
गाँव की गलियों में आज भी बजती है
वो रण-ढोलक,
आज भी लोग कहते —
"ये है वीरों की जननी का लोक",
उनकी आँखें भले ही भीगे रोज़ ,
पर आज भी आंगन में जलते
विजय जोत।
होठों पर वीरों की गाथा सुनकर
गर्व से मन हो जाते ओत प्रोत।।
वो कहती है —
"शौर्य की राह आसां नहीं होती,
ये आँसू कमजोरी के नहीं,
मेरे शेरों के याद के मोती।
मेरे पति - पुत्र,
दोनों रण भूमि के अमर दीप,
जिनकी ज्योति आने वाली पीढ़ियों को
देश के लिए जीना मरना सिखाती।"
आज भी उसके आँगन में तिरंगा लहराता,
रात को चाँदनी में वीरों का चेहरा नजर आता,
और हवाएँ धीमें से कहती हैं —
"माँ, तुम्हारे शेर अजर अमर हैं,
भारत की माटी में उनका रक्त
सदा स्वतंत्रता का फूल खिलाती।"
जय हिन्द। वन्देमातरम।।
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित रचना
लेखक :- कवि काव्यांश "यथार्थ"
विरमगांव, गुजरात।
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