एक नया सवेरा।
एक नया सवेरा।
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जीवन पथ पर चलों,
संभल कर चलो
संभल जा, संभल कर चल,
हर मोड़ पर अनजाने साए यहां,
हर राह कांटों से भरी यहां,
कुछ ठोकरें,
कुछ चोटों की
कसक छुपाए हैं।
संभलते हुए चल,
यह जीवन कोई सरल डगर नहीं,
हर कदम पर बिछे हैं प्रश्नचिह्न,
हर मोड़ पर इंतज़ार करती है
एक अग्निपरीक्षा।
कहीं दबाने वाले मिलेंगे,
कहीं मिटाने वाले खड़े होंगे,
कुछ अपनी,
मुस्कान में छल छुपाएँगे,
कुछ नज़रें ज़हर से भरी होंगी।
यें राहें कभी सपनों के
फूलों से सजी लगा करती हैं,
तो अगले ही क्षण
काँटों की पीड़ा भी
चुभा करती है।
जहाँ एक ओर कोई
साथ देने को हाथ बढ़ाएगा,
वहीं दूसरी ओर कोई
गिराने की साज़िश रचेगा।
यही जिंदगी है प्यारे।।
आगे बढ़ना चाहो भी तो गर,
तो हिम्मत को अपना
साथी बनाना होगा,
राहें चाहे कितनी भी
कठिन हों घर,
तुम्हें अपने कदमों को थामना होगा।
पर याद रखना—
अंधेरों से भागकर कभी
उजाला नहीं मिलता,
ठहर जाने से कभी
मंज़िल नहीं मिलती,
ठोकरों को सीढ़ियाँ
बनाते चलों,
अन्यथा कभी
सफलता नहीं मिलती,
जीवन की ये जंग
आसां नहीं प्यारें,
पर कठिनाई ही हमेशा
शक्ति का बीज बोती है,
हर गिरना एक नया
उठना भी सिखाती है, और
हर आँसू भीतर की आग
को भड़काता है।
इसलिए...
संभल जा, पर
कभी ठहर मत जाना,
डर को दिल में
कभी आने मत लेना,
जिन्होंने मिटाने की ठानी है,
उन्हें तेरे संकल्प के आगे
झुकना ही होगा।।
राह कांटों से भरी सही,
पर फूलों की महक भी यहीं कहीं ,
बस विश्वास रखो अपने कदमों पर,
मंज़िल तुम्हारी इंतज़ार में खड़ी यहीं ।
संभल कर चल—
क्योंकि दुनिया की भीड़
में चेहरे भले मुस्कुराएँ,
पर हर मुस्कान सच्ची नहीं होती।
कभी कोई अपना ही
छाया बन राह रोकेगा,
तो कभी कोई पराया तुम्हें
दिशा दिखाने का ढोंग रचेगा।।
लेकिन यह भी सदैव याद रखो—
सच को दबाया जा सकता है,
पर कभी,
मिटाया नहीं जा सकता।
सत्य की जड़ें गहरी होती हैं,
जो हर तूफ़ान के बाद
ओर भी,
मजबूत होकर खड़ी होती हैं।
धैर्य की डोरी कों थामों,
क्योंकि अधीरता ही
सबसे बड़ी
हार का कारण बनती है।
जीवन केवल मंज़िल तक
पहुँचने का नाम नहीं,
यह उस सफ़र का नाम है
जहाँ हर संघर्ष आत्मा को
तपाकर निर्मल करता है।
गिरकर फिर उठना,
हार से सीखना,
और दर्द को अनुभव में
बदल देना ही सच्ची विजय है।
इसलिए...
जब राह कठिन लगे
तो घबराना मत,
जब अपनों से चोट मिले
तो कभी टूटना मत। ।
हर अँधेरी रात के बाद
एक नया सवेरा होता है,
हर मजबूत इरादों के साथ
जीत भी पक्का होता है।
अश्कों से गिरें हर आँसू
आशाओं का दीप
जलातें है।।
दुःख में जो भी
मुस्कुराइए ,वहीं
जीना सीख जातें हैं।
संभल जा— संभल कर चल
क्योंकि तेरा हर कदम
एक इतिहास रच जाएगा,
हर ठोकर तुझे
ऊँचाई की ओर ले जाएगा।
संभलते हुए चल,
क्योंकि यह जीवन केवल
जीने की यात्रा नहीं,
यह तो आत्मा के
परिष्कार का महायज्ञ है।
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चलों,
जीवन पथ पर
मगर,
संभल कर चलो ।।
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित रचना
लेखक :- स्वाप्न कवि काव्यांश "यथार्थ
विरमगांव, गुजरात।
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