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Ranjit Tiwari

Thriller

5.0  

Ranjit Tiwari

Thriller

पुकार

पुकार

1 min
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हे मातृ भूमि के सेनानी वीर रत्न ,

भयक्रांत काल में न छोड़ प्रयत्न।


अग्नि पथ हो या बर्फ सागर ,

तू अजेय है दिखा सबसे राह बनाकर। 


रणबीर तू रण घोर कर ,

रणराज तू रण छोङ मत 


वीर कर्म तेरा ऐसा हो ,

योद्धा ना कभी तेरे जैसा हो। 


पत्थर पर फिर से पुष्प खिले ,

जब जब तेरा रक्त उबले। 


वीर तेरी जब जग में कृति ,

कि काल चक्र उतारे तेरी आरती। 


जिंदगी क्या मेला है महान ,

वीरोचित जीवन भी है सम्मान। 


शत्रु खड़ा है द्वार पर ,भवे तनि हुई।

रो रही है मातृभूमि ,रक्त से सनी हुई।


कायरों की भीड़ में ,विरता कि हुंकार। 

सच्चे वीर वही हैं ,जो नकारे न ललकार।


शत्रु हर्षित मुद्रा में खड़ा,

मूर्ख इसलिये भ्रम में पड़ा ।


क्योंकि अभी उसे उत्तर नहीं मिला,

पर देखा जग ने धरा अंबर कितनी बार हिला। 


अब समय आ चुका है वीरता दिखाने को,,

फिर से कालखंड को बतलाने को। 



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