घर वापसी ( धारा 370)
घर वापसी ( धारा 370)
आज का दिन है बड़ा सुहाना, फ़िज़ा में खुशियां फैली है
आओ मिलकर ख़ुशी मनाए, घाटी ने बाहें खोली है
सत्तर साल से जिन पैरो को, जंजीरों ने जकड़ा था
घाटी के दामन को अबतक, जिन धाराओं ने पकड़ा था
ख़त्म हुआ अनुच्छेद आज वो, अब तुम खुलकर साँसे लो
कदम बढ़ाओ तुम भी आगे, इस राष्ट्र पुरुष के संग हो लो
शायद थोड़ी देर हुई है, ये पहले ही हो जाना था
भारत माँ को ये धरोहर, अब तक मिल ही जाना था
घाटी केवल स्थान नहीं है, भारत माँ का सम्मान है
मुकुट शीश का सदा रहा है, ये देश का अभिमान है
बहुत सहा है अब तक तुमने, जाने कितने दुःख पाए है
तेरी सीमा के रक्षा में अब तक, कितनों ने प्राण गवाएं है
आतंकवाद के दाग को तुमने, बड़े दिनों तक झेला है
धूल जाएंगे दाग ये सारे, बस चार दिन का खेला है
अभी तलक जो दबी हुई थी, वो सब इच्छा पूरी होगी
दिल्ली से अब कश्मीर की, बे तय दूरी होगी
फांस जो दिल में लगी हुई थी, दिल को जो दुखाती थी
कश्मीर के बिछड़ों को अब तक, जो हर पल बड़ा रुलाती थी
ख़त्म वो सारी बंदिश है अब, डर की कोई बात नहीं
ये तो एक नई सुबह है, लम्बी काली रात नहीं
शत्रु की कोई बुरी नज़र, अब तुझ पर ना पड़ने देंगे
आँख उठाई अगर किसी ने, धड़ से शीश अलग कर देंगे
अब कोई बर्बाद ना होगा, ना अपना घर कोई खोएगा
नए नस्ल की बिज़ यहाँ पर, अब हर कश्मीरी बोएगा
जो खुद घर को लौट ना पाए, वो बच्चों को बतलाएंगे
सफर शुरू बस आज हुआ है, हम लौट के घर को जाएंगे
