परवाज़ दो कोई
परवाज़ दो कोई
खो गई जिंदगी आवाज दो कोई
खामोशी है बहुत साज दो कोई
सब बिखराकर बहुत खुश है ये
सफलता का इसे ताज़ दो कोई..
रस्म-रिवाज औ'कुरीतियां बदलो
नवनीतियों को आगाज़ दो कोई..
खाली मन गढ़ते नये प्रपंच कई
इन बेरोजगारों को काज दो कोई..
जी रहे जो अब तक कल के भरोसे
ऐसे शिथिलों को आज दो कोई..
गिर के जो उठने का हुनर जानता हो
उन पंछियों को परवाज़ दो कोई..