प्रताड़ना जारी है
प्रताड़ना जारी है
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डरी सहमी हुई जिंदगी,
अपनों के बीच प्रताड़ित है।
घूरती आँखों से झांकती वासना,
मन निरंतर प्रताड़ित है।
चरित्र विछेदन है सदा से,
आत्मा निरंतर प्रताड़ित है।
पुरुषत्व बलशाली इतना,
नारीत्व निरंतर प्रताड़ित है।
वंशावली प्रबल है इतनी,
बेटियों का प्यार प्रताड़ित है।
परम्पराओं की बेड़ियाँ जटिल है इतनी,
नारी अस्तित्व प्रताड़ित है।
लालच का जहर फैला है इस तरह,
जीवन अग्नि प्रताड़ित है।
मान समाज का इतना जरूरी,
नारी सम्मान प्रताड़ित है।
लेकिन समाज को जानना होगा,
नारी अस्तित्व को मानना होगा।
शक्ति नारी की अदभुत है,
दण्ड मिलेगा आततायी को।
प्रताड़ना का यह खेल खत्म हो,
शुद्ध करें संसार को।