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Twinckle Adwani

Abstract

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Twinckle Adwani

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दो रूपों में

दो रूपों में

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दो रूपों में क्यों है रे दुनिया

 सुख शांति सब चाहते हैं। 


फिर क्यों छिनते हैं दूसरों की खुशियां

सबको देखते परखते में हैरान हो जाती हूं में।


बहरुपिए व अपनों को ही नहीं समझ पाती हूं में

दो रूपों में क्यों है रे दुनिया। 


सपने सबके हजार होते हैं

फिर क्यों दूसरों की तोड़ते मरोड़ते ये दुनिया। 


तुम भी जिओ सबको जीने दो 

तकलीफ देकर दूसरो को तुम क्या पाओगे। 


तोड़ोगे दूसरों के सपनों को

तो क्या आसमा छूँ पाओगे ?


 तुम भी जीना सीखो सबको जीने दो 

 जीवन को एक नई दिशा दिखाओ।


 निश्चल निस्वार्थ कभी तुम बन जाओ

 ईश्वरी रचना पर गर्व कर पाओ। 


दिखावा, लालच, इर्ष् में कुछ ना पाओगे 

दो रूप की है ये दुनिया।


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