STORYMIRROR

Neerja Sharma

Abstract

3  

Neerja Sharma

Abstract

मन की बात

मन की बात

1 min
132

मन 

की बात

किससे कहूँ

कुछ समझ ना पाऊँ

सोचकर बस यूँ घबराऊँ

कह दी तो मजाक ना बन जाऊँ।


मन 

की बात

मन में घुले 

चारों पहर सोच चले 

चाह कर भी कह न पाऊँ

सोच सोच बस यूँ ही रिसती जाऊँ।


मन 

की बात

बेचैन मन 

ढूँढे है सहारा

डूबते को किनारा 

कलम का हाथ बढ़ना

जिंदगी भर साथ निभाना।


मन

की बात

अब खूब कहती 

बेबाक मन की ही करती 

नहीं ढूँढती अब कोई सहारा

मेरी कलम जीवन भर का आसरा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract