मन की बात
मन की बात
मन
की बात
किससे कहूँ
कुछ समझ ना पाऊँ
सोचकर बस यूँ घबराऊँ
कह दी तो मजाक ना बन जाऊँ।
मन
की बात
मन में घुले
चारों पहर सोच चले
चाह कर भी कह न पाऊँ
सोच सोच बस यूँ ही रिसती जाऊँ।
मन
की बात
बेचैन मन
ढूँढे है सहारा
डूबते को किनारा
कलम का हाथ बढ़ना
जिंदगी भर साथ निभाना।
मन
की बात
अब खूब कहती
बेबाक मन की ही करती
नहीं ढूँढती अब कोई सहारा
मेरी कलम जीवन भर का आसरा।