संबंधों का सिलसिला..
संबंधों का सिलसिला..
कदम बढ़ाया था मैंने तुम्हारी ओर
साथ साथ चलने के वास्ते
कभी तुमने हाथ थामा नहीं
कभी मैंने सहारा माँगा नहीं
इस तरह चलते रहे हम और तुम
सालों साल एक मूक सहमति के साथ
कायम रहा फिर ऐसे ही
संबंधों का सिलसिला
कभी मैंने टोका नहीं,
कभी तुमने पूछा नहीं
इस तरह बढ़ता रहा,
रिश्तों में भी एक फासला
कभी तुमने कुछ कहा नहीं
कभी मैंने कुछ सुना नहीं
इस तरह बढ़ता रहा रिश्तों में
खामोशियों का साया
कभी मैंने आस छोड़ दी
कभी तुमने सदा नहीं दी
इस तरह खिंचता रहा
लकीरों का एक स्याह दायरा
कभी मैंने नश्तर चुभो दिए
कभी तुम्हारे शब्द तीर हो गए
इस तरह चलता रहा
रिश्तों के आइनों का दरकना
फिर भी सालों से एक अबोले
पाक संबंधों का ये सिलसिला
कायम रहा है अब तक
न जाने कैसे हमारा-तुम्हारा रिश्ता