जो मैं जिंदगी के पन्ने पल्टू
जो मैं जिंदगी के पन्ने पल्टू


जो मैं जिंदगी के पन्ने पल्टू
तो तुमसे नहीं कोई प्यारा है
तब तुम ही तुम हो मेरी जिंदगी
अब ये जीवन तनहा बेसहारा है ।
सोचा नहीं था अपने पराए होंगे
पराए रिश्तों में कितना भाईचारा है
कुछ ने तो शब्दो के छंद कहें है, कुछ ने
बिन मांगे डूबती कश्ती को दिया किनारा है
सबको जो इस दुनिया खुश रख पाए
ऐसा जीवन यहाँ किसने गुज़ारा है
इस जीवन के अंत के बाद यहीं पर
मेरा-मेरा कहकर हर किसी ने पुकारा है ।
तनहा शायर हूँ