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Preeti Singh

Abstract

5.0  

Preeti Singh

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आगाज़ बनने आया हूँ मैं

आगाज़ बनने आया हूँ मैं

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ज़िन्दगी के सफ़र में घिरा हूँ में

कई सवालों से भी डरा हूँ में

हारने से डरता नहीं बस

लड़खड़ाने लगा हूँ में

ये सफ़र की शुरुआत थी

जिससे अभी अनजान हूँ में

मंज़िल की चाहत में

बेखौफ बेलगाम हूँ में

बस कल क उस भविष्य का

आगाज़ बनने आया हूँ में

हर छोर की उस हवा में

बसा वो जोश हूँ में

रुका ना कभी ना डरा हूँ में

कल की गलतियों से सीख कर

इतिहास रचने चला हूँ में

घिरा था जिन सवालों में

कल उनके जवाब बनके आया हूँ में

हाँ ज

ी कल उस भविष्य का

आगाज़ बनने आया हूँ में

ना रोक सकोगे न

झुका सकोगे क्यूंकि अब निर्भय हूँ में

जीने की उम्मीदों को

उठाये हुए फिर खड़ा हूँ में

मुश्किलों से तो

हर वक़्त बखूबी लड़ा हूँ में

इसलिए कल के उस भविष्य का

आगाज़ बनने आया हूँ में

जीत का मोहताज़ नहीं

बस कामयाब बनने आया हूँ में

नए सफ़र की

हर चुनौतियों से लड़ने आया हूँ में

नमन है सबको मेरा शीश झुकता हूँ में,

बस तुम्हारी छाया में कल के

उस भविष्य का आगाज़ बनने आया हूँ में.....


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