मैं माँगता हूँ
मैं माँगता हूँ
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वो बुलन्द मुकाम वो खुला आसमान मैं मांगता हूँ
वो सूरज की किरण वो चाँद की चाँदनी मैं माँगता हूँ ,
वो ऊचाँइयों की सरहदें वो समन्दर की लहरें मैं माँगता हूँ ,
वो क़ामयाबी की सेज वो जगमगाहट का तेज़ मैं माँगता हूँ ,
वो हुनर का ताज़ वो जीत का आगाज़
वो उज्याली की शुरुआत वो अंधेरे का अंत मै मांगता हूँ ,
वो खेतों की सरसराहट वो फूलों की खिलखिलाहट मैं माँगता हूँ ,
मैं माँगता हूँ कुछ बचपन के पल
जिनमें माँ का प्यार और बाप का दुलार मैं माँगता हूँ
वो बिफिक्रे उड़ान वो बेलगाम ज़िन्दगी मैं वापस चाहता हूँ ,
मैं तेरी वही इंसानियत तुझमें ज़िन्दा देखना चाहता हूँ ,
तेरे लोभ तेरे लालच का अंत मैं मांगता हूँ ,
डर मत नासमझ मैं तो बस चंद लम्हें आज़ादी के
चंद पल तेरी मेहमान नवाज़ी के मांगता हूँ।