प्रकृति की सीख
प्रकृति की सीख
बहुत रुलाया इंसा तूने,अब यह तुमको रुला रही है।
होकर क्रुद्ध आज यह तुमसे,मौत की नींदें सुला रही है।
तूने समझा नहीं प्रकृति को, अपनी क्षमताओं के आगे।
अब यह समझे बिना ही तुमको,निज अन्तर में मिला रही है।
बहुत रुलाया इंसा तूने,अब यह तुमको रुला रही है।
आये दिन बीमारी बढ़ती,उपचार नहीं मिल पाता है।
कभी एड्स और कभी कोरोना,निजात नहीं मिल पाता है।
अपनी सीमित क्षमताओं से,कब तक युध्द लड़ेगा तू।
इस तरह युद्ध के बदले,प्रकृति का प्यार नहीं मिल पाता है।
आये दिन बीमारी बढ़ती,उपचार नहीं मिल पाता है।
भूल चुका तू शिव की संस्कृति, जो वेदों ने तुम्हें सिखाया था।
उन आदर्शों को तू भूल चुका जो राम ने तुम्हें बताया था।
पशु पक्षी पर्वत पेड़ो से प्यार जताना निज रीति रही।
खो दिया आज तूने वह सब,जो खग मृग ने तुम्हें बताया था।
भूल चुका तू शिव की संस्कृति, जो वेदों ने तुम्हें सिखाया था।
संभलो आज पुनः तुम,अन्यथा अनर्थ हो जाएगा।
अस्तित्व नहीं तेरा होगा,गर संयम न अपनाएगा।
इसलिये सावधानी से ही हर काम तुम्हें करना होगा।
जीवनशैली की नई घुट्टी को आज प्रकृति तुमको पिला रही है।
बहुत रुलाया इंसा तूने,अब यह तुमको रुला रही है।
साफ सफाई संयम का,एक दीप आज यह जला रही है।
जो पथ चलने के योग्य यहाँ, वह ही हमको यह बता रही है।
हम डरे नहीं, भयभीत न हों, बस केवल सचेत हो जाना है।
मिल सके रोशनी हमें यहाँ, दीपक ऐसा वह जला रही है।
बहुत रुलाया तूने इंसा,अब यह तुमको रुला रही है।