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Amlendu Shukla

Others

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Amlendu Shukla

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मैं भी लिखता

मैं भी लिखता

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लिखने को तो मैं भी लिखता,कुछ बातें श्रृंगार की

लहर लहर लहराने वाले,नदिया के जलधार की।

पर दशा देख नवयुवकों की,लेखनी स्वतः रुक जाती है

और शुरू कर देती लिखना,बेरोजगारी के मार की

लिखने को तो मैं भी लिखता,कुछ बातें श्रृंगार की।


नन्हें कदमों से स्कूल गया,पढ़ लिख कर बड़ा बनेगा वो

पुश्तैनी दुश्मन जो गरीबी,उससे बढ़कर लड़ेगा वो।

सुन्दर सुन्दर ख्वाब सजाए,डिग्री लाया संसार की

लिखने को तो मैं भी लिखता,कुछ बातें श्रृंगार की।


दर दर की ठोकर है खाता डिग्री लेकर हाथ में

नहीं किनारा कोई दीखता,न चलता कोई साथ में।

रीढ़ की हड्डी युवा हमारी,जब मायूसी में डूब रहा

अवसादग्रस्त होकर जब तक आँखों को अपनी भींच रहा,

कैसे गीत लेखनी लिख दे, झूठे इक संसार की,

लिखने को तो मैं भी लिखता,कुछ बातें श्रृंगार की।


नया साल आ करके भी, कुछ नया नहीं ला पाया है

बीत रहा जो साल आज,वैसा ही फिर एक आया है।

नए साल से यही प्रार्थना, कुछ नया करे रोजगार की

लिखने को तो मैं भी लिखता,कुछ बातें श्रृंगार की।

लहर लहर लहराने वाले नदिया के जलधार की।


   


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