चाय
चाय
इस कदर घुली है चाय यहाँ,
कि सूना उसके बिना जहाँ।
बिस्तर पर उठते ही न मिले,
तो दौड़े मन फिर यहां वहाँ।
इस कदर घुली है चाय यहाँ।
चाय न इसको कहना तुम,
यह तो अमृत का प्याला है।
दिल में उसके बस जाती है,
जो सच्चा दिलवाला है।
काली पिये , उजली पिये ,
सारा दिन इसके संग जीयें।
पूरी पिये ,आधी पिये ,
मिले साथ तो फिर फिर पीयें।
सुगर अगर हो जाये कहीं तो,
बिन चीनी वाली ही पिये ।
मिले न भोजन चल सकता है,
चाय बिना एक दिन न जीयें।
रस्म यही और भस्म यही,
अब चाय हुई एक हाला है।
चाय न इसको कहना तुम,
यह तो अमृत का प्याला है।
कॉफी, कहवा भाई इसके,
सर्दी न बीते बिन जिसके।
नियमित जो इसका पान कराएं,
देव स्वयम घर आये उसके।
करते रहे बुराई इसकी,
फिर भी साथ न इसका छोड़े।
जिस नुक्कड़ पर चाय मिले न,
उससे सदा सदा मुख मोड़े।
चाय की खुश्बू जहाँ से आये,
आँखे मूँदे वहाँ पर दौड़े।
मैं कहता हूँ चाय पियो तुम,
सोते जगते हाय पियो तुम।
पर गुलाम हो करके,
भटको न तुम यहाँ वहाँ।
हो करके बीमार तुम्हें,
पड़े न जाना कहाँ कहाँ।
इस कदर घुली है चाय यहाँ,
कि सूना उसके बिना जहाँ।।