हे युगद्रष्टा,हे चिरविहान
हे युगद्रष्टा,हे चिरविहान
हे युगद्रष्टा, हे चिरविहान,
हे मानवता के महाप्राण,
हे अस्थिशेष, हे रक्तशेष,
हे चिरनवीन, हे चिरपुरान,
गौरव भी तुझसे गौरव पाता,
अम्बर भी तुझको शीश झुकाता,
भृकुटी जब तन जाये तेरी,
तो जग दौड़ा-दौड़ा आता,
तुझको मुस्काते हुए देख,
हर कोई हँसता, मुस्काता,
अतुलित गुण की तू महा खान,
हे चिरनवीन, हे चिरपुरान,
हे युगद्रष्टा, हे चिरविहान।
लेकर छोटी सी काया,
तू बढ़ा सदा न घबराया,
जो भी भीम भयंकर थे,
सबने ही तुझको शीश झुकाया,
हथियार तेरा सत्याग्रह का,
जग जिससे नहीं पार पाया,
स्थापित करने आदर्श नये,
आया था तू आँधी समान,
हे युगद्रष्टा, हे चिरविहान,
हे मानवता के महाप्राण ।
रामराज का सपना देखा
जग में सबको अपना देखा
सबको एक बनाया तूने
सच्ची राह चलाया तूने
पग-पग फूल खिलाया तूने
तू लोकतंत्र का महाप्राण
हे चिरनवीन, हे चिरपुरान
हे युगद्रष्टा, हे चिरविहान।