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Amlendu Shukla

Tragedy

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Amlendu Shukla

Tragedy

सोच रहा था

सोच रहा था

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सोच रहा था मैं भी, कुछ गीत लिखूँ शृंगार की

दिलों में बसने वाले हर तोता मैना के प्यार की

स्नेह लुटाती बच्चे पर माँ के अद्भुत प्यार की

बूढो सङ्ग खेलते हुए हर बच्चे के मनुहार की।


पर सम्भव कैसे हो मुझसे, जब आग लगी है सीने में

स्वयम जल गए वो सारे, रोटी जिनकी थी पसीने में

अब क्या होगा उन बच्चों का, जिनका सब कुछ खाक हुआ

बच्चे कैसे जी पायेंगे, जिनका सब कुछ बर्बाद हुआ।


इतनी क्यों निर्दय आग हुई, क्यों उसको दया नहीं आई

जलाकर बहुतेरे घर को, पीड़ा क्यों सबको पहुँचाई

आज व्यथाएँ कहती हैं, कि दोष लिखूँ अंगार की

करूँ निवेदन प्रभु से, वे पीड़ा हरें संसार की

सोच रहा था मैं भी कुछ गीत लिखूँ शृंगार की।


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