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प्रकृति बचाओ

प्रकृति बचाओ

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हरी-भरी हो गई धरती,

हर तरफ हरियाली छाई,

मिट गई तपन सारी,

आकाश ने यूँ बरखा की झड़ी लगाई।


सब धूल बह गई,

निखर गये, नहा लिए,

पेड़, पहाड़, झाड़ियाँ,

लग रहा मानों सबने,

पहनी हरी-हरी साड़ियाँ।


चौमासा आया, खुशी है सबको,

शुक्रिया सब करते हैं बार- बार रब को।

ये मनुष्य तो स्वार्थी है,

पानी बिना जीवन नहीं, जानता है।


पर फिर भी बिना प्रदुषित किये,

बिना व्यर्थ बहाए कहाँ मानता है ?

अरे! ये तो हवा में भी जहर भर रहा है,

विकास के नाम पर प्रकृति से खिलवाड़ कर रहा है।


नासमझ मनुष्य !

प्रकृति को बार- बार झकझोर नहीं,

प्रकृति सिर्फ मौन है कमजोर नहीं।

अगर चुप्पी तोड़ी इसने तो,

जलजला आ जायेगा,

जो सारी सृष्टि को,

बहा ले जाएगा ।।


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